काबुल। तालिबान ने सीमावर्ती प्रांत बदाख्शान में कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है। दूसरी तरफ़ ताजिकिस्तान प्रशासन ने अफ़ग़ान शरणार्थियों के आने की संभावना को ध्यान में रखते हुए तैयारी कर दी है। जिस रफ़्तार से तालिबान अपने कब्ज़े वाले इलाके का दायरा बढ़ा रहा है, उससे साफ हो गया है कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की पूर्ण वापसी के बाद अफ़ग़ान सुरक्षा बल उसके सामने टिक नहीं पाएगा।
अफ़ग़ानिस्तान में पिछले 20 सालों से नाटो की अगुआई में सैन्य अभियान चल रहा है। सितंबर तक अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी होनी है, जिनमें से ज्यादातर पहले ही लौट चुके हैं। अमेरिका ने तालिबान के साथ एक समझौता किया था जिसके तहत विदेशी सैनिक वहां से निकल जाएंगे और बदले में तालिबान वहां अल-क़ायदा या किसी अन्य चरमपंथी गुट को अपने नियंत्रण वाले इलाक़े में गतिविधियां नहीं चलाने देगा।
पाकिस्तान में अफगानिस्तान के राजदूत रह चुके डॉ उमर ज़खिलवाल ने दावा किया कि तालिबान एक के बाद एक जिलों पर नियंत्रण करता जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि इनसे मुकाबले की कोई योजना नहीं बनाई जा सकी है। उन्होंने कहा कि तालिबान के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, फिलहाल वे उन जिलों पर कब्जा कर रहे हैं, जहां वे पहले से ही बिना किसी प्रतिरोध के मजबूत हैं, इन सब के बीच सुरक्षा बल मायूस हैं।
उन्होंने कहा यह सिर्फ कुछ जिलों की बात नहीं है। तालिबान का डर शहरों तक पहुंच गया है। सुरक्षा बलों का मनोबल गिर गया है और वे बिना किसी प्रतिरोध के आत्मसमर्पण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अफगान के लोगों को उम्मीद थी कि अमेरिका पूरी तरह से वापसी से पहले उनके मुल्क में शांति सुनिश्चित करेगा, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया। तालिबान ने बताया कि नाटो की सितंबर में वापसी की मियाद ख़त्म होने के बाद, अफ़ग़ानिस्तान में एक भी विदेशी सैनिक की मौजूदगी को ‘क़ब्ज़ा’ माना जाएगा।
यह बयान राजनयिक मिशनों और काबुल के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की सुरक्षा के लिए, क़रीब 1,000 अमेरिकी सैनिकों के अफ़ग़ानिस्तान में ही बने रहने की ख़बरों के बाद आया है। अफ़ग़ानिस्तान में नाटो का 20 साल का सैन्य मिशन अब ख़त्म हो गया है। देश में तालिबान के बढ़ते क़दमों के बीच हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। तालिबान के साथ एक समझौते के तहत, अमेरिका व उसके सहयोगी अफ़ग़ानिस्तान छोड़ रहे हैं।

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