नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता की वैधता के मुद्दे पर दुनिया के देश बंटते दिख रहे हैं। कुछ तालिबान के साथ हैं, कुछ विरोध में और कुछ देशों ने पत्ते नहीं खोले हैं। ब्रिटेन ने तालिबान की सत्ता को मान्यता नहीं देने का ऐलान किया है, तो चीन-पाकिस्तान ने तालिबान से दोस्ती के संकेत देते हुए कहा है कि वे काबुल स्थित अपने दूतावास बंद नहीं करेंगे। कुछ दिन पहले कतर, जर्मनी और तुर्की भी तालिबान का विरोध कर चुके हैं। प्रमुख देशों के रुख इस प्रकार हैं- ब्रिटेन: ब्रिटेन ने कहा है कि तालिबान को अफगानिस्तान सरकार की मान्यता नहीं दी जा सकती। तालिबान के नियंत्रण की आलोचना करते हुए ब्रिटेन ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की विफलता है। ब्रिटिश रक्षा मंत्री बेन वालेस ने कहा कि पश्चिम देशों ने अफगानिस्तान में आधा-अधूरा काम किया। उन्होंने कहा-अफगानिस्तान में समस्या अभी खत्म नहीं हुई है, विश्व को मदद करनी चाहिए। भारत: भारत ने अफगानिस्तान पर तालिबान के शासन के मुद्दे पर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। हालांकि कुछ दिन पहले भारत ने कहा था कि वह अफगानिस्तान में हिंसा और जोर-जबरदस्ती के बल पर बनाई गई सरकार को मान्यता नहीं देगा। अमेरिका: अमेरिका शुरू से ही अफगानिस्तान सरकार का समर्थक रहा है। कुछ दिन पहले राष्ट्रपति बाइडन ने कहा था कि अफगान सेना को अपने बल पर तालिबान को हराना होगा। लेकिन अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से तालिबान को मान्यता देने के सवाल पर बाइडन का अभी कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है। चीन: चीन ने कहा है कि वह अफगानिस्तान में तालिबान से दोस्ताना संबंध बनाएगा। चीन की नजरें मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए अफगानिस्तान का इस्तेमाल करने पर हैं। रूस: तालिबान से संबंध को लेकर रूस की सरकार ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। रूसी राष्ट्रपति के विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि हमरे दूतावास के अधिकारी तालिबान के अधिकारियों से बातचीत कर रहे हैं। तालिबान के प्रति रूस का रुख क्या होगा इस बाद में फैसला लिया जाएगा। पाक: पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सोमवार को कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अफगानिस्तान के संपर्क में रहना चाहिए। कुरैशी ने तालिबान से संबंध बनाए रखने की वकालत करते हुए कहा- हमारा मानना है कि आगे के लिए एकमात्र राह वार्ता से राजनीतिक समाधान निकालना है, हम लगातार गृह युद्ध नहीं देखना चाहते।

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