नई दिल्ली। पेगासस जासूसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने साफ किया है कि वह सरकार को कोई भी ऐसी बात बताने के लिए बाध्य नहीं कर रहा है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के हिसाब से संवेदनशील हो। केंद्र ने आज एक बार फिर विशेषज्ञ कमिटी के गठन की अनुमति मांगी। कोर्ट ने कहा है कि सरकार का जवाब देखने के बाद कमिटी के गठन पर विचार किया जाएगा। कथित जासूसी कांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में करीब 1 दर्जन याचिकाएं दाखिल हुई हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मामले की जांच की मांग की गई है। कल हुई सुनवाई में केंद्र ने जासूसी के आरोपों को निराधार बताया था। केंद्र ने प्रस्ताव दिया था कि वह याचिकाकर्ताओं का संदेह दूर करने के लिए एक विशेषज्ञ कमिटी के गठन करेगा। याचिकाकर्ताओं ने केंद्र के संक्षिप्त जवाब का विरोध किया था। उन्होंने कोर्ट से मांग की थी कि वह सरकार को विस्तृत हलफनामा देने को कहे। यह पूछे कि सरकार ने पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया या नहीं। सुनवाई की शुरुआत में ही चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से इस बिंदु पर सवाल पूछ लिया। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार और कोई हलफनामा दाखिल करना चाहती है। मेहता ने विस्तृत हलफनामा देने में असमर्थता जताते हुए कहा, “याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार यह बताए कि वह कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करती है, कौन सा नहीं। राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में यह सब हलफनामे के रूप में नहीं बताया जा सकता। कल को कोई वेबसाइट मिलिट्री उपकरण के इस्तेमाल पर कोई खबर प्रकाशित कर दे तो क्या हम सार्वजनिक रूप से उन सभी बातों का खुलासा करने लगेंगे?” सॉलिसीटर जनरल ने विशेषज्ञ कमिटी के गठन पर ज़ोर देते हुए कहा, सरकार यह नहीं कह रही कि वह किसी को कुछ नहीं बताएगी। लेकिन कुछ बातें सार्वजनिक तौर पर हलफनामा दायर कर नहीं बताई जा सकतीं। भारत सरकार को कमिटी बनाने दिया जाए। सरकार कमिटी को हर बात बताएगी। वह कमिटी कोर्ट को ही रिपोर्ट देगी। सॉलिसीटर जनरल के इस जवाब पर तीनों जजों ने काफी देर तक आपस मे चर्चा की। इसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा, “हम में से कोई नहीं चाहता कि राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता हो। हम संवेदनशील बातें नहीं पूछ रहे। लेकिन याचिकाकर्ता कुछ नागरिकों की निजता का सवाल उठा रहे हैं। अगर वैध तरीके से कोई जासूसी हुई है तो इसकी अनुमति देने वाली संस्था को हलफनामा दाखिल करना चाहिए। हम सिर्फ इस पहलू पर नोटिस जारी करना चाहते है। आपको संवेदनशील बातें बताने की ज़रूरत नहीं। याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील रख रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी कहा कि वह नहीं चाहते कि सरकार अपने सॉफ्टवेयर जैसी संवेदनशील बातों को सार्वजनिक करे। लेकिन सिब्बल का कहना था कि सरकार को कम से कम यह बताना चाहिए कि उसने पेगासस का इस्तेमाल किया है या नहीं सुनवाई के अंत में कोर्ट ने एक बार फिर यह साफ किया कि वह सरकार को कोई भी संवेदनशील बात बताने को बाध्य नहीं कर रहा। चीफ जस्टिस ने कहा, “हम नोटिस बिफोर एडमिशन जारी कर रहे हैं। कमिटी के गठन जैसी बातों पर बाद में फैसला लिया जाएगा।” कोर्ट ने 10 दिन बाद मामला सुनवाई के लिए लगाने का निर्देश दिया है।

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