नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान की भावी सरकार पर भारत समेत दुनिया के दूसरे देश गहन चिंतन और विचार कर रहे हैं। भारत भी इस पर विचार कर रहा है। हालाकि भारत पहले ही कह चुका है कि उन्हें तालिबानी की कथनी और करनी पर कोई विश्वास नहीं है। इस बारे में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने ताजा बयान में कहा है कि भारत अफगानिस्तान पर पूरी नजर रखे हुए है। उनकी तरफ से ये भी कहा गया है कि फिलहाल भारत का ध्यान अफगानिस्तान में मौजूद अपने नागरिकों की सुरक्षा और उनकी सुरक्षित निकासी पर है। उन्होंने कहा कि वहां पर संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन के काम में भी परेशानी आ रही है।
दरअसल भारत ने अफगानिस्तान में करोड़ों डालर का निवेश किया हुआ है। तालिबान के आने के बाद इस निवेश पर संकट के बादल भी मंडरा रहे हैं। ये भी स्पष्ट नहीं है कि इस पर अब आगे बढ़ा जाए या नहीं। तालिबान का रवैया भी ऐसा नहीं दिखाई देता है कि उस पर विश्वास किया जाए। एक बड़ी वजह ये भी है कि तालिबान एक आतंकी संगठन है जिसका अब एक राजनीतिक चेहरा सामने आया है। ऐसे में इसकी सरकार को मान्यता देना पूरी दुनिया में अलग-थलग होने जैसा है। ये भी तय नहीं है कि यदि ऐसा कर दिया जाए तो भी भारत के हित पूरे हो सकेंगे। हालाकि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद विश्व समुदाय के साथ चलने की बात कही है। तालिबान ने ये भी कहा है कि वो विश्व के देशों के साथ बातचीत चाहता है। हालांकि उनके पुराने ढर्रे को देखते हुए अधिकतर देश उनकी बातों पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। अफगानिस्तान के मुद्दे पर पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक बार फिर से सीसीएस की बैठक हुई थी।
इस बैठक में अफगानिस्तान के ताजा हालात से निपटने के लिए जो रणनीति पहले तय हुई थी, उसकी समीक्षा की गई है। सूत्रों की मानें तो सरकार ने अफगानिस्तान से आने वाले हिंदुओं और सिखों को तुरंत शरण देने का आदेश भी दे चुकी है। इनको बाद में नागरिकता भी दी जाएगी। सरकार ने इनके लिए वीजा के आ














