नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते हुए वर्चस्व के बीच अशरफ गनी देश छोड़कर भागे, तब मुल्क के पहले उप-राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने देश में रहकर तालिबान के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया।
अमरुल्ला सालेह ने खुद को कार्यकारी राष्ट्रपति घोषित कर दिया हैं, वह इस वक्त पंजशीर इलाके में हैं। जिसपर तालिबान अबतक कब्जा नहीं कर पाया है, जबकि अफगानिस्तान के बाकी 34 प्रांतों में उसका ही कब्जा है।
पंजशीर प्रांत तालिबान के खिलाफ बने राष्ट्रीय मोर्चे का अहम हिस्सा है। अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह की अगुवाई में यहां से तालिबान को चुनौती दी जा रही है।तमाम चुनौतियों के बीच 17 अगस्त, 2021 को अमरुल्ला ने खुद को कार्यकारी राष्ट्रपति घोषित किया, उन्होंने संविधान का हवाला दिया लेकिन तालिबान इस नहीं मानता है। गनी के जाने के बाद अमरुल्ला सालेह की ओर से अफगानी नेताओं से संपर्क साधकर तालिबान के खिलाफ जारी लड़ाई को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। अमरुल्ला ने साफ किया है कि वह अपने देश के लिए लड़ूंगा और तालिबान के सामने नहीं झुकने वाला हूं। पंजशीर प्रांत में अक्टूबर 1972 में पैदा हुए अमरुल्ला ताजिक एथनिक ग्रुप के परिवार से संबंध रखते हैं। कम उम्र में ही उनके ऊपर से परिवार का साया उठ गया था। इसके बाद उन्होंने छोटी उम्र में ही अहमद शाह मसूद की अगुवाई में एंटी-तालिबानी मूवमेंट को ज्वाइन कर लिया। अमरुल्ला सालेह को तालिबान ने निजी तौर पर नुकसान पहुंचाया है।1996 में तालिबानियों ने उनकी बहन को टॉर्चर कर मार डाला। सालेह बताते हैं कि तब से ही तालिबान के प्रति उनका रुझान पूरी तरह बदल गया।इसके बाद उन्होंने तालिबान को हराने के लिए लड़ाई में हिस्सा लिया। साल 1997 में अमरुल्ला सालेह को मसूद द्वारा यूनाइटेड फ्रंट के अंतराष्ट्रीय दफ्तर में नियुक्त किया गया। जो ताजिकिस्तान के दुशान्बे में था।वहां उन्होंने विदेशी इंटेलीजेंस के साथ मिलकर काम किया। अमरुल्ला सालेह साल 2001 तक नॉर्दन एलाइंस के साथ रहे, उसके बाद 9/11 के हमले के बाद अमेरिका की अफगानिस्तान में एंट्री हो गई। तब अमरुल्ला ने अमेरिकी एजेंसी सीआईए के साथ मिलकर काम किया, तालिबान को कमजोर करने के लिए उन्होंने इंटेलिजेंस ऑपरेशन को अंजाम दिया। साल 2004 में अमरुल्ला सालेह को अफगानिस्तान इंटेलिजेंस एजेंसी नेशनल सिक्युरिटी डॉयरेक्टरेट का प्रमुख बनाया गया।इसतरह उन्होंने तालिबान के खिलाफ अपना नेटवर्क तैयार किया, जो कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान की सीमा और आसपास में अपनी जड़ें मजबूत कर रहे थे।तालिबान को पाकिस्तान समर्थन दे रहा था,इसके बाद अमरुल्ला भी पाकिस्तान के खिलाफ हो गए है। मीटिंग में जब अमरुल्ला की मुलाकात पाकिस्तान के परवेज मुशर्रफ से हुई, तब उन्होंने कह दिया था कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में ही है, मुशर्रफ वहां मीटिंग छोड़कर ही चले गए थे। अमरुल्ला का नेटवर्क धीरे-धीरे मजबूत होता गया और तालिबान के अंदर की डिटेल उन्हें मिलती चली गई।साल 2010 में अमरुल्ला सालेह ने इंटेलिजेंस की जॉब से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि तब एक हमला हुआ था जिसके बाद रणनीति पर काफी सवाल खड़े हो रहे थे। दरअसल, तब हामिद करजई और तालिबान के बीच बातचीत का रास्ता निकला था, लेकिन सालेह ने इस एक साजिश बताया था।इवके बाद से ही दोनों के बीच में संबंध बिगड़ने लगे थे।
साल 2011 में अमरुल्ला सालेह ने हामिद करजई के खिलाफ कैंपेन छेड़कर उनकी नीतियों पर सवाल खड़े करने लगे। इसके बाद उन्होंने नेशनल मूवमेंट की शुरुआत की और फिर अशरफ गनी के साथ हाथ मिला लिया। सितंबर 2014 में अशरफ गनी सत्ता में आए और अमरुल्ला सालेह को बाद में गृह मंत्री बनाया गया। 2019 में जब अशरफ गनी फिर से राष्ट्रपति बने, तब अमरुल्ला सालेह को उपराष्ट्रपति बनाया गया। वहां अफगानिस्तान के पहले उप-राष्ट्रपति बने। अब एक बार फिर जब अफगानिस्तान मुश्किल में है और तालिबान के हाथ में है, तब अमरुल्ला एक बार फिर तालिबान के खिलाफ लड़े हुए हैं।

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