काबुल। काबुल एयरपोर्ट पर इस्लामिक स्टेट खुरासन (आईएस-के) के आतंकी हमले के अलर्ट के बाद सन्नाटा पसर गया है। एयरपोर्ट पर यात्रियों के न पहुंचने के कारण कई विदेशी फ्लाइट्स को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि इस्लामिक स्टेट खुरसान मॉड्यूल के आतंकी काबुल एयरपोर्ट के बाहर भीड़ को निशाना बनाने की फिराक में हैं।
उधर, तालिबान ने भी अमेरिकी रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए बताया है कि उसने आईएस-के के चार आतंकियों को एयरपोर्ट की रेकी करते हुए पकड़ा है। हमले के अलर्ट को देखते हुए अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने अपने नागरिकों को एयरपोर्ट से दूर रहने की सलाह दी है। ऐसे में अंदेशा जताया जा रहा है कि अमेरिकी सैनिकों की 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से पूर्ण वापसी की समयसीमा तक सभी विदेशी नागरिकों को निकाला नहीं जा सकेगा। तालिबान ने भी स्वीकृति दी है कि वह 31 अगस्त के बाद भी अफगानिस्तान छोड़ने वाले लोगों को एयरपोर्ट तक आने में मदद देगा।
तालिबान के काबुल में घुसने के बाद 11 दिनों के अंदर अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने लगभग 88000 लोगों को अफगानिस्तान से निकाला है। इसे अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़ा और खतरनाक रेस्क्यू मिशन माना जा रहा है। अमेरिकी सेना का कहना है कि औसतन हर 39 मिनट में कोई न कोई विमान काबुल एयरपोर्ट से उड़ान भर रहा है। तालिबान के लड़ाके एयरपोर्ट के बाहर के इलाके की रखवाली कर रहे हैं। इन इलाकों में अफगानिस्तान छोड़कर जाने वाले हजारों लोग कई दिनों से डेरा डाले हुए हैं।
बताया जा रहा है कि अब भी करीब 1500 अमेरिकी पासपोर्टधारक अब भी काबुल में फंसे हुए हैं। अमेरिका और तालिबान के सौदे के अनुसार, बिना पासपोर्ट, बिना ग्रीन कार्ड, बिना सत्यापित दस्तावेजों के किसी को भी नहीं जाने दिया जा रहा है। हालांकि, तालिबान लड़ाके इस बात को लेकर भ्रम में हैं कि सत्यापित दस्तावेज कैसा दिखता है। इस्लामिक इस्टेट के खुरसान मॉड्यूल ने पहले भी अफगानिस्तान में कई आतंकी हमले किए हैं। इस आतंकी संगठन ने मई में काबुल में लड़कियों के एक स्कूल पर हुए घातक विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें 68 लोग मारे गए और 165 घायल हो गए थे। आईएस-के ने जून में ब्रिटिश-अमेरिकी हालो ट्रस्ट पर भी हमला किया था, जिसमें 10 लोग मारे गए थे जबकि 16 लोग घायल हुए थे।

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