नई दिल्ली। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से भारत की निगाहें तालिबान पर हैं। कई एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि भारत को अफगानिस्तान में अब बेहद ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि चीन, पाकिस्तान और तालिबान एक साथ आकर भारत की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। ऐसे में अफगानिस्तान में भारत के राजदूत रह चुके गौतम मुखोपाध्याय का अफगान पॉलिसी को लेकर क्या सोचना है, आइए जानते हैं। तालिबान से बात करनी चाहिए को लेकर गौतम बताते हैं कि बैकचैनल बातचीत होते रहे हैं। भारतीयों को वापस भारत लाने में यह अहम रहा। हमारी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कुछ हद तक व्यावहारिक जुड़ाव उचित है। लेकिन हम अफगान लोगों के साथ अपने संबंधों को खुला रखना चाहते हैं तो तालिबान को मान्यता दिए बिना तालिबान से कम से कम जुड़ना चाहिए। पाकिस्तान और तालिबान के संबंधों को लेकर गौतम बताते हैं कि इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि पाकिस्तान ने तालिबान को लगातार मजबूत किया है। सत्ता में आने के बाद तालिबान का पाकिस्तान आना-जाना लगा रहेगा। तालिबान 2.0 को पाकिस्तान की ओर से हर संभव मदद दी गई है। लेकिन सरकार गठन के बाद तालिबान नेता इस बात से असहज हो सकते हैं कि पाकिस्तान उन्हें नियंत्रित कर रहा है। भारत तालिबान संबंधों को लेकर वह गौतम बताते हैं कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की अधिकतर आबादी तालिबान शासन के विरोध में हैं। ऐसे में तालिबान से न्यूनतम संबंध बनाकर चलने की जरूरत दिखती है।

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