नई दिल्ली। अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद से ही चीन और तालिबान एक दूसरे पर डोरे डाल रहे हैं और अब तालिबान ने अपने आका यानी पाकिस्तान की राह पर चलते हुए चीन के महत्वाकांक्षी सीपीईसी यानी चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जुड़ने की इच्छा जाहिर की है। तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने सोमवार को यह कहा कि उनका संगठन सीपीईसी में शामिल होने की इच्छा रखता है। तालिबान के इस बयान से भारत की चिंता बढ़ सकती है क्योंकि भारत इस परियोजना का हमेशा से मुखर विरोधी रहा है। मुजाहिद ने यह भी बताया कि आने वाले दिनों में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई चीफ फैज हामिद और तालिबान के सीनियर नेता मुल्लाह अब्दुल गनी बरादर की मुलाकात होने वाली है। सीपीईसी चीन के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट ‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव’ यानी बीआरआई का हिस्सा है। चीन बीआरआई को ऐतिहासिक सिल्क रूट का मॉडर्न अवतार बताता है। दरअसल, मध्य युद में सिल्क रूट वह रास्ता था जो चीन को यूरोप और एशिया के बाकी देशों से जोड़ता था। वहीं, चीन-पाक आर्थिक गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन जैसे विवादित इलाकों से होकर गुजरता है। यह एक हाइवे और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है जो चीन के काशगर प्रांत को पाकिस्तान के ग्वारदर पोर्ट से जोड़ेगा। इस प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में बंदरगाह, हाइवे, मोटरवे, रेलवे, एयरपोर्ट और पावर प्लांट्स के साथ दूसरे इंफ्रस्क्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को डेवलप किया जाएगा। विवादित क्षेत्र से गुजरने की वजह से ही भारत इसका विरोध करता है। चीन ने साल 2015 में सीपीईसी प्रोजेक्ट का ऐलान किया था, जिसकी लागत करीब 4.6 अरब डॉलर है। इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन की मंशा पाकिस्तान के साथ ही मध्य और दक्षिण एशियाई देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने की है ताकि भारत और अमेरिका के प्रभाव को कम किया जा सके। सीपीईसी प्रोजेक्ट पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ेगा। बता दें कि तालिबान ने यह बयान ऐसे समय दिया है जब पहले से ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ उसकी मिलीभगत को लेकर कयासबाजी जारी है। कई अमेरिकी अधिकारी भी यह कह चुके हैं कि तालिबान के गठन में पाकिस्तानी ने अहम भूमिका निभाई है और अब वहां सरकार बनाने में भी इस्लामाबाद अपनी मनमानी चलाना चाहता है।

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