नई दिल्ली। एक महिला की पति के सरकारी आवास पर रहने की जिद्द को अदालत ने न्यायसंगत नहीं माना है। अदालत ने इस महिला की पति के सरकारी निवास पर जबरन रहने के हक को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा है कि पत्नी अपने पति की निजी संपति पर अधिकार मांग सकती है। सरकार द्वारा आवंटित स्थान पर हक दिखाना उचित नहीं है।

हां पति रहेगा, वहां पत्नी साथ रहने का अधिकार मांग सकती

पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेन्द्र राणा की अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जहां पति रहेगा, वहां पत्नी साथ रहने का अधिकार मांग सकती है। लेकिन सरकारी संपति पर बने रहने का हक उचित नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि महिला चाहे तो पति से रहने के लिए जगह की मांग कर सकती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह उस आवास पर कब्जा कर ले जो सरकार द्वारा उसके पति को निर्धारित अवधि के लिए आवंटित किया गया है। महिला पति से रहने के जगह की मांग करते हुए अलग से याचिका दायर कर सकती है। लेकिन पारवारिक विवाद में सरकारी निवास पर कब्जा न्यायोचित नहीं है।

हिला को सरकारी आवास को खाली करना होगा

लिहाजा महिला को सरकारी आवास को खाली करना होगा। यह विवाद एक सेना के अधिकारी व उनकी पत्नी के बीच है। सेना के अधिकारी को पहले दिल्ली में सरकारी आवास आवंटित था। जिसमें दोनों पति-पत्नी रहते थे। लेकिन कुछ समय पहले दोनों के बीच आपस में विवाद रहने लगा। इसी दौरान पति का दूसरे राज्य में ट्रांसफर हो गया। पति ट्रांसफर के बाद राजस्थान चला गया। लेकिन पत्नी दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर बनी रही। सरकार द्वारा फ्लैट खाली करने का नोटिस दिया गया तो महिला ने पति के आवास पर रहने का अधिकार का हवाला दे आवास खाली करने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं पत्नी ने अपने हक के आधार पर अदालत में याचिका भी दाखिल की। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद महिला ने सत्र अदालत का दरवाजा खटखटाया। परन्तु सत्र अदालत ने साफ कर दिया कि उसकी मांग नाजायज है।

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