गणेश जी को खुश करने का सबसे सस्ता और आसान उपाय दूर्वा है।
दूर्वा गणेश जी को इसलिए प्रिय है क्योंकि दूर्वा में अमृत मौजूद होता है। गणपति अथर्वशीर्ष में कहा गया गया है कि जो व्यक्ति गणेश जी की पूजा दुर्वांकुर से करता है वो कुबेर के समान हो जाता है। कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। कुबेर के समान होने का मतलब है व्यक्ति के पास धन-धान्य की कभी कमी नहीं रहती है.
मोदक
श्रीगणेश को प्रसन्न करने का दूसरा तरीका है मोदक का भोग।
जो व्यक्ति गणेश जी को मोदक का भोग लगाता है गणपति उनका मंगल करते हैं। मोदक का भोग लगाने वाले की मनोकामना पूरी होती है।
मोदक की तुलना ब्रह्म से की गयी है।
मोदक भी अमृत मिश्रित माना गया है।
घी
पंचामृत में एक अमृत घी होता है।
घी को पुष्टिवर्धक और रोगनाशक कहा जाता है.
भगवान गणेश को घी काफी पसंद है.
घी से गणेश की पूजा का बड़ा महात्म्य होता है.
जो व्यक्ति गणेश जी की पूजा घी से करता है उसकी बुद्धि तेज होती है.
घी से गणेश की पूजा करने से योग्यता और ज्ञान सब कुछ हासिल होता है.
शास्त्रों में भगवान गणेश को, विघ्नहर्ता यानि सभी तरह की परेशानियों को खत्म करने वाला बताया गया है। पुराणों में गणेशजी की भक्ति शनि समेत सारे ग्रहदोष दूर करने वाली बताई गई हैं। हर बुधवार के शुभ दिन गणेशजी की उपासना से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है और सभी तरह की रुकावटें भी दूर होती हैं।
श्रीगणेश की पूजा विधि-
स्नान के बाद सर्वप्रथम साफ वस्त्र धारण करें
ताम्र पत्र का श्री गणेश यन्त्र लें
यंत्र को साफ मिट्टी, नमक, निम्बू से अच्छे से साफ करें
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर के आसान पर बैठें
सामने श्री गणेश यन्त्र की स्थापना करें।
सभी पूजन सामग्री को इकट्ठा कर लें
फूल, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि गणेश जी को चढ़ाएं
इसके बाद श्रीगणेश की आरती करें
अंत में भगवान गणेश जी का स्मरण करें
‘ऊँ गं गणपतये नम:’ मंत्र का 108 बार जाप करें
इस मंत्र में भगवान गणेश के बारह नामों का स्मरण किया गया है। इन नामों का जप अगर मंदिर में बैठकर किया जाए तो ये उत्तम फल देते हैं… तो आप इन उपायों को अपनाएं… श्रीगणेश को मनाएं और मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद पाएं।
इस उपाय से श्रीगणेशकी पूजा करने वाले भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं लंबोदर लेकिन बुधवार के दिन एक खास उपाय से आपकी मनोकामना शीघ्र हो सकती है पूरी
‘गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक :।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।’
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