चतुर्वेद विश्व मानवता के लिए प्राण वायु – श्री दिनेश चन्द जी

नरेंद्र भंडारी 4 अक्टूबर 2019,नई दिल्ली- विश्व हिन्दू परिषद् व अशोक सिंघल फाउंडेशन एवं झण्डेवाला देवी मंदिर के तत्वावधान में लक्ष्मी नारायण मंदिर (बिड़ला मंदिर) में छह दिवसीय चतुर्वेद स्वाहाकार महायज्ञ कार्यक्रम का भव्य समापन कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा (14 अक्टूबर 2019) को हुआ। इस भव्य कार्यक्रम में कई देशों एवं देश के सभी प्रांतों से वेदों के मानने वाले और सनातन धर्म मंे आस्था रखने वाले भक्तजन इस आयोजन में शामिल हुए। श्रीश्रीश्री त्रिदंडी स्वामी रामानुजाचार्य जियर चिन्न स्वामी जी ने अपने 61 वेदपाठियों के साथ विस्तार पूर्वक वेद से सम्बन्धित छह दिवसीय आयोजन में होने वाली सम्पूर्ण प्रक्रिया से सम्बन्धित भक्तगणों का ज्ञानवर्धन किया। उन्होंने यज्ञ की प्रक्रिया को बताते हुए कहा कि यज्ञ में क्या और क्यों यह होता है तथा इसके पीछे का उद्देश्य बताया। वेद मंत्र कंठस्थ वेदपाठी, विद्वानों द्वारा अलग-अलग यज्ञ कुंडों में शुद्ध सस्वर उच्चारण करते हुए उन्होंने यज्ञ में पूर्ण आहुति देकर वेद भगवान यज्ञ का समापन वैदिक विधि विधान पूर्वक किया।
विश्व हिन्दू परिषद की प्रबन्ध समिति के सदस्य श्री दिनेश चन्द्र ने बताया कि विश्व के कल्याण के लिए यह यज्ञ है। वेद के विषय में अनेक भ्रांतियां फैली हैं जैसे महिलाएं वेद नहीं पढ़-सुन नहीं सकतीं, कोई विशेष वर्ग नहीं सुन सकता यह सच नहीं है। उन्होंने बताया कि यजुर्वेद के 26वें मंडल के दूसरे अध्याय में बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि वेदों का ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, नारी, सेवक कोई भी श्रवण, अध्ययन और पठन कर सकता है और किसी को भी उसका श्रवण करा सकता है। वेद के बारे में फैले भ्रम इत्यादि दूर हो इसलिए दिल्ली में ऐसा महायज्ञ पहली बार हो रहा है। सामाजिक समरसता की दृष्टि से भी यह ऐतिहासिक है, इसमें झुग्गियों से लेकर महलों तक रहने वाले विभिन्न समाज नेता, धर्म नेता, राज नेता, सभी को बुला गया है वे सब शामिल हुए। दक्षिण के 61 आचार्य यहां आए हुए हैं जिनको वेद कंठस्थ हैं। घनपाठी विद्वान आए हैं जो शुरु से जो वाक्य पढ़ा उसे उसी स्वर में विपरीत दिशा में भी उसको उसी रूप में बोल सकते हैं ऐसे वर्षों में तैयार होने वाले घनपाठी विद्वान भी यहां आए हैं।

Grand finale of 6-day Chaturved Swahakara Mahayagya, gathered mass
श्री दिनेश जी ने देश विदेश से आये हुए सभी भक्तों संतों एवं सभी आयोजक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं एवं मीडिया का विशेष आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह विशाल आयोजन हिन्दू परम्परा में सदैव समतामूर्ति रामानुजाचार्य द्वारा जन-जन के लिए खोले गये वेद मंदिर के द्वार पर सभी के लिए सदैव एक सार्वजनिक सामाजिक व्यवहारिक वैज्ञानिक परम्परा से ओत-प्रोत ऐतिहासिक कार्यक्रम के रूप में याद किया जायेगा। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द वेदोें को समाज का दर्पण समझने की कला और समस्त विश्व के लिए वरेण्य मानते थे और उन्होंने कहा कि यदि आज हमारी संस्कृति बचेगी तभी हमारा भविष्य और भविष्य की संततियां बचेगी।

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आज प्रातः 9 से 12 के सत्र में पूर्णाहुति से समय पर चारों वेदों के जो उच्चारण हुए उनके वेद का नाम उनकी शाखा उसके बाद फिर उस वेद मंत्र का उच्चारण शुद्ध सस्वर इस तरह से अलग-अलग वेदों का स्वर था। इस तरह से भगवान को समपर्ण हुआ उसके बाद आरती हुई। अंत में सभी को प्रसाद वितरण हुआ। इस महायज्ञ में मुख्य यजमान स्वामी चिदानन्द जी महाराज ऋषिकेश, स्वामी विवेकानन्द जी महाराज, मुनि वत्सल जी महाराज, विहिप केन्द्रीय अध्यक्ष श्री विष्णु सदाशिव कोकजे एवं विहिप संयुक्त महामंत्री डा. सुरेन्द्र जैन जी, श्रीराम माधव संगठन महामंत्री भाजपा, झण्डेवाला मंदिर से श्री रवीन्द्र गोयल जी यजमान स्वरूप उपस्थित हुए। प्रातः 8.15 बजे से यह सभी यजमानों ने पूर्ण विधि विधान से पांचों यज्ञ कुंडों में भगवान को अर्पण करते हुए विधिवत आहुति दी। आज महायज्ञ में आए उदासीन आश्रम पहाड़गंज के स्वामी राघवानंद जी महाराज उपस्थित थे।

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इस भव्य आयोजन में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड, नार्वे, थाईलैण्ड, सिंगापुर सहित अनेक देशों के वेद प्रेमी भक्तगण शामिल हुए तथा उन्होनंे अपने-अपने देशों में चतुर्वेद महायज्ञ करने के लिए संतों से आग्रह किया। हाॅलेण्ड के प्रिंस लुईस सहित सभी विदेशी अतिथियों ने वैदिक गणवेश में उपस्थित होकर पूजा अर्चना की। वेद कंठस्थ करने की जो परंपरा विश्व हिन्दू परिषद ने गत 17 वर्षों से प्रारम्भ की हुई है उसमें मंडोली के वेद विद्यालय के बटुक जिनको यजुर्वेद का शुक्ल यजुर्वेद कंठस्थ कराया जा रहा है वे भी इस यज्ञ में वेद मंत्रोच्चारण करते हुए उपस्थित थे। माताएं, बहने, पुरुष और अनेक विद्वान, संस्कृत के अनेक ज्ञाता, लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्व विद्यालय के कुलपति रमेश पांडे जी महाराज, उनके साथ जिनको अलग-अलग वेद कंठस्थ हैं।

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महायज्ञ में हरिद्वार ऋषिकेश से आए पू. स्वामी चिदानन्द जी महाराज इस महायज्ञ के उद्देश्य बताते हुए कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण विश्व में वैष्मयता बढ़ रही है, प्रकृति में प्रतिकूलता बढ़ रही है तो हम ऐसा मानते हैं कि यज्ञ के माध्यम से धरती, अम्बर, अग्नि, जल, वायु, निहारिका, नक्षत्रों का संतुलन बनेगा और प्राणियों में सदभावना आती है। यज्ञ से उन्माद शिथिल होता है, उत्तेजना शिथिल होती है। यज्ञ के माध्यम से वो हारमोन-कैमिकल्स डेवलप होते हैं जो व्यक्ति को सहज, स्वाभाविक, नैसर्गिक, प्रकृतिक और संयमित रखते हैं अतः उसे अत्यंत संतुलित करते हैं। यज्ञ से पाचक रस सहज बनते हैं। यज्ञ के परिणाम यह भी देखे गए कि समूची प्रकृति में एकता आ जाती है, एकरूपता आ जाती है। यज्ञ सब के कल्याण की चीज है सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयः तो सबका आनन्द हो, सबके स्वाभिमान सम्मान की रक्षा हो।
चतुर्वेद स्वाहाकार महायज्ञ कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए विश्व हिन्दू परिषद प्रांत मंत्री श्री बचन सिंह जी का विशेष योगदान रहा। मा. दिनेश जी ने बचन जी को कार्यक्रम सफल बनाने पर भूरि-भूरि प्रशंसा की।

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