बलरामपुर। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के पचपेड़वा ब्लाक अंतर्गत जिगनिहवा निवासिनी पुष्पा पांडेय का मायका नेपाल राष्ट्र के बहादुरगंज कपिलवस्तु में है। कोरोना महामारी काल में दोनों देश की सीमाएं सील थीं। पुष्पा रक्षाबंधन व भाईदूज में मायके नहीं जा सकीं। वहां रिवाज है कि भाईदूज पर भाई अपनी बहन को हाथ से पानी पिलाते हैं। भाई ने पुष्पा को वीडियो कॉलिंग कर प्रतिकात्मक रूप से पानी पिलाया। सीमा पार करने की ढील मिली तो पुष्पा अपने मायके पहुंच गईं।

11 माह बाद बिटिया को देख मां-पिता की

लगभग 11 माह बाद बिटिया को देख मां-पिता की आंखों से आंसू छलक पड़े। पुष्पा ने भाई को राखी बांधी और मिठाई खिलाई। रक्षाबंधन में न मिल पाने का गिला-शिकवा दूर हो गया। पुष्पा की तरह तमाम लोगों की राह लॉकडाउन ने रोक रखी थी। वे विशेष अवसरों पर अपने स्वजनों से नहीं मिल सके। अब पैदल सीमा पार करने में छूट पर एक-दूसरे से मिलने का सिलसिला शुरू हुआ है। कोरोना संक्रमण काल में एक-दूसरे से न मिल पाने का मलाल दिल में भले ही हो लेकिन रिश्तों की डोर कमजोर नहीं हुई। भारत-नेपाल के बीच रोटी बेटी का संबंध सदियों पुराना है। जिले में लगभग 82 किलोमीटर खुली सीमा है, लेकिन कभी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।

अधिकांश लोगों ने नेपाल की नागरिकता

बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महराजगंज, बहराइच, श्रावस्ती व अयोध्या सहित तमाम जिलों के हजारों लोग नेपाल में कारोबार करते हैं। अधिकांश लोगों ने नेपाल की नागरिकता प्राप्त कर ली है। उन्हें वहां मधेशी कहा जाता है। कोरोना संक्रमण काल में पिछले साल मार्च माह में दोनों देशों की सीमाएं सील कर दी गई थी। आवागमन ठप हो गया था। करीब एक माह पूर्व सीमा पर पैदल आने-जाने की छूट मिली है। कृष्णा नगर नेपाल के कस्टम चीफ जनार्दन पौडेल ने बताया कि प्रारंभिक जांच के बाद भारत-नेपाल के लोगों को कृष्णा नगर सीमा पैदल पार करने की अनुमति दी गई है। नेपाल सीमा पर तस्करों व अराजक तत्वों पर सेना नजर रख रही है। एसएसबी नौवीं बटालियन कोयलाबास चौकी के कमांडेंट लामा सिरिंग का कहना है कि नेपाल से आने वाले बीमार व जरूरतमंद लोगों को भारतीय सीमा में आने की छूट जांचोंपरांत दी जाती है।

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