नई दिल्ली। पोक्सो एक्ट के फैसलों को लेकर चर्चा में आई जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला की नौकरी पर खतरे की तलवार लटकी है। असल में जस्टिस पुष्पा को लेकर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एक फैसला लिया है। कोलेजियम ने जस्टिस पुष्पा की परमानेंट जज की पुष्टि को होल्ड पर डाल दिया है। बता दें कि उनके प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पोक्सो) अधिनियम के तहत बच्चों पर यौन हमले पर उनके विवादास्पद फैसलों को देखते हुए कोलेजियम ने ये कदम उठाया है। जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला की नौकरी पर फिलहाल तलवार लटक रही है।

12 फरवरी को अतिरक्त न्यायधीश के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है

अगर उनके कार्यकाल का विस्तार करने का फैसला नहीं किया जाएगा, तो वह जज नहीं रह जाएंगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के नेतृत्व में एससी कोलेजियम को ये फैसला लेना है। संवैधानिक प्रावधानों के तहत, एक अतिरिक्त न्यायाधीश को अधिकतम दो साल के लिए नियुक्त किया जा सकता है, जबकि स्थायी न्यायाधीशों को 62 वर्ष की आयु तक नियुक्त किया जाता है। इसके अलावा, एक अतिरिक्त न्यायाधीश को कोलेजियम की सिफारिश के बाद स्थायी किया जा सकता है, या कार्यकाल को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में दो साल तक बढ़ाया जा सकता है।

जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला के फैसले की बहुत निंदा हुई

19 जवनरी को एक फैसले में, उन्होंने कहा कि एक नाबालिग को उसके कपड़ों को हटाए बिना यौन उत्पीड़न करना सेक्शुअल असॉल्ट नहीं बल्कि आईपीसी के तहत केवल छेड़छाड़। सीजेआई की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी। 15 जनवरी को एक अन्य फैसले में उन्होंने एक व्यक्ति को ये कहते हुए राहत दे दी कि पांच साल की लड़की का हाथ पकड़ना और उसके साथ पैंट जिप खोलना पैक्सों एक्ट के तहत नहीं बल्कि आईपीसी की धारा 354 के तहत आता है।

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