नई दिल्ली । पूर्व क्रिकेटरों ने कहा है कि कोविड-19 महामारी को देखते हुए भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने रणजी ट्राफी का आयोजन नहीं करने का जो फैसला किया है वह पूरी तरह ठीक है। यह पहली बार है जब रणजी ट्रॉफी नहीं हो रही है। रणजी के आधार पर ही भारती टीम में चयन की परंपरा रही है। पूर्व भारतीय विकेटकीपर चंद्रकांत पंडित ने कहा कि खिलाड़ियों को इसके नहीं होने से नुकसान तो है पर अभी के हालात को देखते हुए बीसीसीआई ने जो भी फैसला किया है वह सभी के सेहत की सुरक्षा को देखते हुए जरुरी है।
बीसीसीआई ने अपनी मान्यता प्राप्त इकाइयों को जानकारी दी है
संशोधित सत्र में विजय हजारे ट्रॉफी, सीनियर महिला एकदिवसीय टूर्नामेंट और अंडर-19 वर्ग में लड़कों के लिए वीनू मांकड़ ट्रॉफी का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि कम से कम दो टूर्नामेंटों का आयोजन हो रहा है। अंडर-19 विश्व कप को ध्यान में रखते हुए बीसीसीआई को कम समय में वीनू मांकड़ ट्रॉफी का आयोजन भी करना था। पूर्वोत्तर के राज्यों के शामिल होने के बाद घरेलू टूर्नामेंट में 38 प्रथम श्रेणी टीमें हो गई हैं और कोच वसीम जाफर ने व्यावहारिक मुश्किलों का हवाला दिया। उसी के बाद रणजी को आयोजित नहीं करने का फैसला हुआ।
जाफर ने कहा कि आदर्श स्थिति में मैं चाहता कि रणजी ट्रॉफी का आयोजन हो
तकरीन 38 टीमों के साथ, इतने सारे खिलाड़ी, स्थल और बाकी चीजों को देखते हुए संभवत: साजो सामान के लिहाज से यह थोड़ा मुश्किल होता। बीसीसीआई ने हालांकि घरेलू खिलाड़ियों को मुआवजे का वादा किया है और इससे उन्हें कुछ वित्तीय राहत मिल सकती है। घरेलू क्रिकेट के एक अन्य दिग्गज खिलाड़ी अशोक मल्होत्रा का मानना है कि रणजी ट्रॉफी के आयोजन के लिए चार महीने तक जैविक रूप से सुरक्षित माहौल में रहना कभी भी व्यावहारिक विचार नहीं था।
बंगाल के गेंदबाजी कोच राणादेब बोस ने भी कहा कि जैविक रुप से सुरक्षित माहौल में हर दूसरे दिन आपका परीक्षण होता है। बोस ने कहा कि रणजी ट्रॉफी लगभग चार महीने का टूर्नामेंट है। इतने समय तक अपने परिवार से दूर अल-थलग रहना मानसिक सेहत के लिए भी ठीक नहीं होता है।
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