दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी का शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) का लगभग 21 सालों पुराना गठबंधन टूट चुका है। अकाली ने सीएए को लेकर मतभेद का हवाला देते हुए चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है। जंहा यहां दोनों पार्टियों की राहें अलग हो गई हैं, लेकिन यह ध्यान रखा जा रहा है कि इसका असर केंद्र में समझौते पर न पड़े। दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ी थीं और शिअद बादल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसीमरत कौर इस समय नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं।

गठबंधन टूटने के बावजूद दोनों ओर से संयम
जहां यह कहा जा रहा है कि दिल्ली में गठबंधन टूटने के बावजूद दोनों ओर से संयम रखा जा रहा है। कोई भी नेता एक-दूसरे के खिलाफ सख्त टिप्पणी करने से बच रहा है। सोमवार को चुनाव नहीं लड़ने का एलान करते हुए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि यह फैसला सिर्फ दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए है। पंजाब व केंद्र से इसका कोई संबंध नहीं है। इस बारे में कोई भी फैसला शीर्ष नेतृत्व लेगा।

16-17 सीटों पर अकेले लड़ने का फैसला
बता दें कि चुनाव नहीं लड़ने का फैसला भी सोच-समझकर लिया गया है। पहले 16-17 सीटों पर अकेले लड़ने का फैसला किया गया। कई अकाली नेताओं को नामांकन पत्र तैयार करने को भी कह दिया गया, लेकिन शाम होते-होते पार्टी इससे पीछे हट गई। दरअसल, इन दिनों पार्टी अंदरुनी लड़ाई से जूझ रही है। मनजीत सिंह जीके सहित कई नेता पार्टी से अलग हो गए हैं। इस स्थिति में गठबंधन के बगैर चुनाव जीतना मुश्किल था। दूसरे उम्मीदवार उतारने से भाजपा के खिलाफ बयानबाजी भी करनी पड़ती, जिससे दोनों दलों के बीच खाई और गहरी होती। इसे ध्यान में रखकर चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया गया। सिरसा ने स्पष्ट किया है कि कोई भी अकाली नेता निर्दलीय भी चुनाव नहीं लड़ेगा। यदि कोई चुनाव मैदान में उतरता है तो उसका अकाली दल से नाता खत्म हो जाएगा। भाजपा नेता भी संतुलित बयान दे रहे हैं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का कहना है कि अकाली दल हमारा पुराना सहयोगी है। सीएए के मुद्दे पर भी सदन में साथ मिला है। किसी कारणवश समझौता नहीं हो सका है।

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