भारत के राज्य बिहार में विधानसभा चुनाव इसी साल होने वाले हैं और अब इसे लेकर राजनीतिक सुगबुगाहट भी तेज होती दिख रही है। आने वाले दिनों में नए-नए नारों और दावों के बीच एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी और छींटाकशी का दौर भी देखने को मिलेगा। हालांकि, इसकी शुरुआत अभी जदयू-राजद के बीच पोस्टर वार से हो चुकी है। वहीं, भाजपा इस चुनाव में झारखंड चुनाव में मिली हार को किसी भी सूरत से दोहराना नहीं चाहेगी। इसके अलावा राज्य में लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल भी अपनी साख को बचाने के लिए इस चुनाव में खुद को कम होते नहीं देखना चाहती है। कुल मिलाकर सभी पार्टियां इस चुनाव में एड़ी-चोटी तक का जोर लगाकर इसका परिणाम अपने पक्ष में करने की रणनीति या तो तैयार कर चुकी हैं या फिर इसको अंतिम रूप देने में लगी हैं।
इस सवाल पर अभी खींचतान होना बाकी
बता दें कि, इस मुकाबले में जहां भाजपा ने नीतीश कुमार को एनडीए का नेता घोषित कर दिया है, वहीं विपक्ष के पास नेता कौन होगा, इस सवाल पर अभी खींचतान होना बाकी है। बिहार में नेतृत्व विहीन पांच दलों को मिलाकर बने महागठबंधन ने बीते साल लोकसभा चुनाव में करारी हार देखी थी, लेकिन इस हार के बाद भी विपक्ष ने कोई सीख नहीं ली और वो अब भी बिखरा-बिखरा दिखाई दे रहा है। राजनीतिक तौर पर विपक्ष की यह स्थिति एनडीए के लिए काफी अच्छी साबित हो सकती है।
जदयू में आंतरिक मतभेद
सीएए-एनआरसी को लेकर पिछले साल बिहार में जहां जदयू में आंतरिक मतभेद नजर आया, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व पर कुछ भाजपा नेताओं ने सवाल उठाए, जिस पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया है कि बिहार में एनडीए विधानसभा का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगा और इसे लेकर किसी को कोई दुविधा नहीं है। उनके इस बयान ने चुनाव में सीएम कैंडिडेंट को लेकर उठने वाले सभी सवालों पर विराम लगा दिया है। उन्होंने ये बयान एक निजी चैनल को दिए अपने एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के दौरान दूसरी बार दिया है। वहीं,जब इस दौरान सीटों के बंटवारे की बात पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वक्त आने पर वो भी हो जाएगा। इसके साफ मायने हैं कि एनडीए ने जो नेता तय किया था, अब वही नेतृत्व संभालेगा।