अविनाश भगत : अभी तक प्रदेश की जंगलात तथा आम सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों को लेकर सुखिर्या बनती रही है। परंतु ताजा मामला जम्मू विकास प्राधिकरण यानि जेडीए की जमीन पर सरकारी अमले के साथ मिली भगत करके उस पर मालिकाना हक लेने का है। यह सनसनी खेज मामला जम्मू की एक विशेष अदालत में विचाराधीन केस की सुनवाई के दौरान सामने आया है।
भूमि घोटाले की व्यापक जांच
दरअसल, शहर से सटे ढिल्ली गांव की अरबों रूपये मूल्य की जमीन पर भूमाफियाओं ने नेताओं व सरकारी अमले के साथ मिलकर कब्जा कर अपने नाम करवा लिया। अदालत ने अपने एक व्यापक एवं कड़े आदेश में कहा है कि इस बहुत बड़े भूमि घोटाले की व्यापक जांच की जाए। अदालत ने अपने 9 पेज के आदेश में कईं गंभीर टिप्पणियां भी की हैं। विशेष अदालत के जज यशपाल बर्नी ने अपने आदेश के पैरा न0-13 में विशेषतौर पर उल्लेख किया कि इस भू-घोटाले में पुलिस, नौकरशाहों, राजनेताओं तथा कारोबारियों सांठगांठ की गहरी जड़ें दिखाई देती हैं। इस बीच सूत्रों का कहना है कि जेडीए की उक्त जमीन का गोरखधंधा तत्कालीन गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में हुआ।
भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में शिकायत
यह मामला जेडीए की स्थानीय तहसील व गांव ढिल्ली स्थित खसरा नं0-781 की कुल 154 कनाल 5 मरले में से 5 कनाल 2 मरला भूखंड पर शहर के एक प्रमुख कारोबारी को मालिकाना हक दिए जाने से जुडा है। इस कारोबारी ने जेडीए के उक्त भूखंड पर कब्जा कर मालिकाना हक के लिए जम्मू डीसी के दफतर में 16 नंवबर 2004 को अर्जी लगाई थी। जिसके बाद आखिरकार 9 जून 2008 को कारोबारी द्वारा उक्त भूखंड के लिए 91 लाख 80 हजार रूपये जमा कराए जाने के बाद उन्हें मालिकाना हक दे दिया गया। चूंकि जब रोशनी एक्ट 2001 बना तब यह साफ तौर पर कहा गया था कि जंगलात की जमीन, शमशानघाट, प्रस्तावित सरकारी योजनाओं के साथ साथ जेडीए की जमीन पर कोई भी मालिकाना हक नहीं ले सकता। फिर भी उक्त बड़े कारोबारी को जेडीए की भूमि पर किए गए कब्जे का मालिकाना हक दिया गया था। जिसके खिलाफ आरटीआई कार्यकर्ता प्रो0 एसके भल्ला ने पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में शिकायत दी। जिस पर एफआईआर नंबर 06/2014 दर्ज की गई। जिसमें जम्मू के तत्कालीन मंडलायुक्त सुधांशु पांडे, डीसी जम्मू हिरदेश कुमार राजस्व विभाग के अस्सिटेंट कमीश्नर राजेंद्र सिंह तथा पटवारी अनवर सिड़ोत्रा को प्रतिवादी बनाया गया।
कलोजर रिपोर्ट में नाम भी दर्ज
सूत्रों का कहना है कि शुरूआती तौर पर भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को शिकायत पुख्ता लगी और जांच शुरू हो गई। आखिरकार इसी साल 9 जनवरी को कोर्ट में कलोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी गई। जिसमें उक्त दोनों बड़े नौकरशाहों के नाम नहीं थे। केवल तत्कालीन तहसीलदार नारायण सिंह, गिरदावर गिरधारी लाल तथा लाभार्थी कोराबारी बंशी लाल के नाम थे। पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने अपनी कलोजर रिपोर्ट में यह भी कहा कि जेडीए की इस भूमि की सुरक्षा के लिए दो पुलिस चैकियों की तत्कालीन एसएसपी, जम्मू, आरआर स्वैन ने स्थापना की थी। जेडीए की यहां जमीन पर कईं उच्च रसूक वाले लोगों ने आलीशान घर तथा बड़े बड़े निर्माण खडे कर लिए। जिनमें कांग्रेस के पूर्व मंत्री, एक पूर्व एमएलए, के अलावा पुलिस के अधिकारी, बडे कारोबारी भी शामिल हैं। जिनके बकायदा इस कलोजर रिपोर्ट में नाम भी दर्ज किए गए हैं।
रोशनी स्कीम
बता दें कि रोशनी स्कीम सन् 1990-91 में तत्कालीन डॉ0 फारूक अब्दुल्ला की सरकार के समय लाई गई थी। जिसका मकसद सरकारी जमीन पर कब्जा करके अवैध निर्माण करने वालों से एक शुल्क लेकर उन्हें नियमित कर मालिकाना हक दे दिया जाए। तब सरकार की ओर से यह कहा गया था कि सूबे में करीब 20 लाख कनाल जमीन पर आसीन अवैध कब्जेदारों से नियमित करने पर करीब 25 हजार करोड़ रूपया एकत्र होगा। जिसे नवनिर्मित हाईड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्टस पर खर्च किया जाऐगा। सूत्रों का कहना है कि इस स्कीम की आड में नेताओं, नौकरशाहों तथा भूमाफिया गठजोड ने जमकर चांदी कूटी। इसीलिए सरकार के कोष मे जो पैसा आया वह ऊंठ के मुंह में जीरे समान रहा। जबकि जेडीए की जमीन पर अवैध कब्जों व घोटालों की कहानियां अलग हैं। लेकिन कलोजर रिपोर्ट पर बहस करते हुए शिकायतकर्ता एसके भल्ला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेख शकील अहमद ने अदालत में पक्ष रखकर कहा कि इस पूरे मामले की पुनः जांच की जाए। जिस पर अदालत ने मामले की जांच रिपोर्ट पर भी गौर करते हुए भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के एसएसपी, जम्मू को निर्देश दिए कि वह जेडीए के भूखंड पर हुए अवैध कब्जे की व्यापक जांच कर अदालत में रिपोर्ट दाखिल करें। वहीं यहां की जेडीए भूमि पर बने अवैध आवासीय तथा व्यावसायिक निर्माणों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाए।