मदरलैण्ड संवाददाता, बगहा

आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व से चली आ रही पुरानी परंपराओं के बीच महिलाओं द्वारा जांत्ता चक्की  से गेहूं पीसना , दाल  दरना तथा ढेंका चलाकर धान से चावल निकाल कर अपने परिवार को भोजन के रूप में परोसना चंपारण की शान में महिलाओं की अहम भूमिका रही है। इस दौरान 55 वर्षीय महिला मीरा देवी ने बताया कि शादी के पूर्व होश संभालने के बाद धान कूटने तथा गेहूं पीसने वाला आटा चक्की का मशीन हमने नहीं देखा था। घर की बुजुर्ग महिलाएं अपने घर खर्ची के लिए प्रतिदिन दिन के 2:00 बजे के बाद जाता लेकर गेहूं पीसने में  व्यस्त हो जाती थी । साथ ही धान कूटने के लिए दो व्यक्तियों की नितांत आवश्यकता होती थी। क्योंकि धान कूटने के लिए पैरों का लगता चलाना होता था। जिससे हार थक कर दूसरी महिलाओं को चलाना पड़ता था।
जाता चक्की, ढेंका चलाकर महिलाओंं का कसरत पूरी होती थी
महिलाओं ने जाता चक्की ढेंका चला कर अपने कार्यों के साथ कसरत भी पूरी कर लेती थी। इन सभी कार्यों से किसी महिलाओं को कभी बुखार तक नहीं लगता था। साथ ही स्वास्थ्य की पूरी गारंटी होती थी। यहां तक कि घर से कई माइल दूर तक कुआं होते थे। जहां से पानी गागर में भरकर घर लाने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती थी। क्योंकि उस समय पुरुष प्रधान देश हुआ करता था। इन सब के बावजूद भी महिलाओं ने अपने बच्चे बच्चियों की पालन पोषण में किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती थी।
मशीनरी युग में आज महिलाएं व्यथित हैं। क्योंकि डिजिटल इंडिया में लोगों ने प्रवेश कर लिया है। सभी प्रकार के सामान आपके घर बैठे ही प्राप्त हो जा रहे हैं। जिस कारण महिलाओं को आराम के साथ स्वास्थ्य खराब होने लगी है। जिसको देखते हुए कुछ ज्ञानियों के द्वारा योग करने की लगातार सलाह दिया जाता रहा है। अपनी पुरानी परंपराओं को भूल जाने के कारण आज यह स्थिति उत्पन्न हो गई। आज भी जंगल के सीमावर्ती इलाकों में यदि देखा जाए तो महिलाओं के द्वारा इस उपकरण से लगातार अपने कार्यों को संपादन करने के लिए तत्पर देखती हैं। वर्तमान में वहीं महिलाएं स्वस्थ हैं जो इस तरह के उपकरणों का उपयोग कर रही हैं।

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