हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र का गुरुवार को चौथा दिन है। वही लोकसभा में आज दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण पर चर्चा होगी। जहां राज्यसभा में सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 को चर्चा के लिए पेश किया जाएगा। संसद के शीतकालीन सत्र का गुरुवार को चौथा दिन है। ट्रांसजेंडर विधेयक को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन सदन में चर्चा के लिए पेश किया जाएगा।
हमने जताई थी गंभीर आपत्ति
जहां कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कहा, जब इलेक्टोरल बॉन्ड पेश किए गए थे, तो हममें से कई लोगों ने इसपर गंभीर आपत्ति जताई थी कि कैसे यह आसानी से अमीर निगमों और व्यक्तियों के लिए अनुचित राजनीतिक दलों, विशेष रूप से सत्तारूढ़ पार्टी को प्रभावित करने का एक तरीका बन सकता है।
इलेक्टोरल ब़ॉन्ड पर सरकार को बनाएंगे जवाबदेह
कांग्रेस की संसदीय रणनीति बैठक को लेकर सूत्रों का कहना है, हम इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे को इतनी जल्दी खत्म नहीं होने देंगे। हम सरकार को जवाबदेह बनाएंगे। सरकार के खिलाफ रणनीति बनाने के लिए विपक्षी दलों तक पहुंचकर हम इस पर विस्तृत चर्चा चाहते हैं। यदि सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड पर चर्चा करने की अनुमति नहीं देती तो कांग्रेस सदन से वॉकआउट करेगी। कांग्रेस गांधी की प्रतिमा के सामने प्रदर्शन भी करेगी।
लोकसभा में विपक्ष का हंगामा
प्रश्नकाल के दौरान विपक्ष ने लोकसभा में काफी हंगामा किया है। इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कांग्रेस ने सरकार को घेरने की रणनीति बनाई है। वहीं निचले सदन में युवाओं और खिलाड़ियों को लेकर चर्चा चल रही थी। विपक्ष के हंगामे को लेकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि आप सभी से निवेदन है कि अपनी सीटों पर वापस जाएं। वेल में आकर कोई भी आसन से बात न करे आपसे यही आग्रह है।
वनवासियों को जमीन के अधिकार से वंचित करने का मुद्दा
बता दें कि आप के राज्य सभा सदस्य संजय सिंह ने वन अधिकार कानून का सही तरीके से पालन नहीं होने से वनवासियों के वन संपदा और जमीन के अधिकार से वंचित होने का मुद्दा गुरुवार को उच्च सदन में शून्य काल में उठाने की अनुमति सभापति से मांगी है। सिंह ने राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को पत्र लिख कर कहा है कि वन क्षेत्र में निवास करने वाले वनवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए वन अधिकार क़ानून को लागू हुए 12 साल हो गए लेकिन यह समुचित तरीके से अमल में नहीं लाया जा सका है। इस कारण से देश के लाखों वनवासी वन संपदा और जमीन के अधिकार से वंचित होकर विस्थापन की स्थिति में आ चुके है।