एजेंसी। 

हमारे यहाँ एक कहावत हैं की दो सांडों की लड़ाई में खेत की बिरवाई का नुक्सान होता हैं। यही दोस्ती सत्कार्य में हो तो उस जैसा सुख नहीं और यदि दोस्तों की दुश्मनी से उनका खुद नुक्सान होता हैं और उनका दुष्प्रभाव अन्यों को भी भोगना होता हैं। चीन और अमेरिका प्रभुत्व की लड़ाई में एक दूसरे को नीचा दिखाने में बाज़ नहीं आते। जबकि इतने बुद्धिजीवी कहलाते है पर मानवीय गुणों से विहीन उसका कारण उनकी सोच ,उनका आहार ,उनकी संकीर्ण वृतियां.
पता नहीं इतने सम्पन्न होने केबावजूद उनमे सीमा नहीं ,संयम नहीं ,एक दूसरे प्रति आदर नहीं बस अहंकार ,तृष्णा ,अस्तित्व की लड़ाई में दिन रात बैचेन। एक पद सब क्षणिक हैं और पद पर रहते हुए सत्कर्म याद रखे जाते हैं अन्यथा इस जमीं पर अच्छे अच्छे सूरमा दफ़न हो गए और हो जायेंगे जिनको कोई पूछने वाला नहीं रहता हैं।
जो बात सामने आयी हैं की कोरोना वायरस को बनाने में अमेरिका ने चीन को रीसर्च करने २९ करोड़ रुपये यानी ३.७ मिलियन डालर की आर्थिक मदद की हैं ताकि वो इस बात पर रिसर्च कर सके की क्या कोरोना का वायरस गुफाओं में रहने वाले चमगादड़ की वजह से फैला। वैज्ञानिक मानते हैं की चमगादड़ के जरिये ही कोरोना का संक्रमण इंसानों के शरीर में आया हैं। वहां के मांस बाजार में यह संक्रमण चमगादड़ के द्वारा आया और फिर पूरे विश्व में फ़ैल गया।
इस बात की पुष्टि भी हो रही हैं की यह संक्रमण चीन की प्रयोगशाला से हुआ हैं। जिस प्रयोगशाला में जानवरों पर भारी अत्याचार होते हैं उसके लिए अमेरिका ने क्यों धन दिया।
इस बात की पुष्टि से यह सिद्ध हो चूका हैं की यह मानव कृत्य त्रासदी हैं और इससे होने वाली हिंसा का फल सबको भोगना होगा जिन्होंने इसमें भागीदारी निभाई हैं।
यदि हम ईश्वरवादी और कर्म सिद्धांत पर भरोसा रखते हैं तो जरूर कहर इन नेताओं पर जरूर पड़ेगा। यह कृत्य किसी भी तरह से क्षम्य नहीं हैं।

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