नागरिकता पर विभ्रम : राष्ट्रीय चिंतन

पार्थसारथी थपलियाल,
वरि. मीडियाकर्मी और मीडिया विश्लेषक

नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के अस्तित्व में आने के कुछ ही समय बाद देश भर में विरोध का दौर शुरू हुआ। सरकार की अवांछित नीतियों का विरोध करना विपक्ष और नागरिकों का कर्तव्य है। भारत का संविधान नागरिकों को मान्यता देता है, संविधान नागरिक हितों की रक्षा करता है। यह बात सभी पक्षों को समझनी चाहिए। नागरिक के कुछ कर्तव्य भी होते हैं, उसे उनकी पालना कर भी आना चाहिए। भारत मे संसदीय प्रणाली है। लोग चुनकर अपने प्रतिनिधि कानून बनाने और शासन चलाने के लिए भेजते हैं। चुनी हुई सरकार नागरिकों के लिए काम करती है। लोककल्याण करना सरकार का दायित्व भी है। भारत मे अभी 6-7 महीने पहले ही मतदाताओं ने सरकार चलाने के लिए अपना मत और अभिमत व्यक्त किया है। ऐसे में जो लोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए देश मे उन्माद फैलाने का काम कर रहे हैं वे देश के साथ नाइंसाफी कर रहे हैं।

जामिया मिलिया इस्लामिया विश्विद्यालय के छात्र जिस बात को लेकर अपना आंदोलन शुरू किए वह सरासर झूठ था। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे हिन्दू, सिख, बौद्ध , जैन, इसाई और पारसी लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है, जिन्हें इन देशों में धार्मिक प्रताड़ना के कारण अपना देश छोड़ना पड़ा और वे उपयुक्त प्रमाणों के साथ 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले से भारत मे रह रहे हैं। सवाल उठाया जा रहा है कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (जाति, धर्म, लिंग या स्थान के आधार पर भेदभाव निषेध) और 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का अतिक्रमण कर भेदभाव पैदा किया जा रहा है। क्या वास्तव में ऐसा हुआ है?

ब्रिटिश इंडिया में अफगानिस्तान भी भारत का हिस्सा था, जहां भारतीय लोग रहते थे। 90 के दशक में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तालिबनियों की सहायता की और कट्टर इस्लाम को पनपाया। शरिया को देश का कानून बनाया गया। हज़ारों भारतीयों को प्राण गंवाने पड़े। बामियान में भगवान बुद्ध की पाषाण प्रतिमा को तोपों से खंडित किया गया। 1947 में जब भारत विभाजन हुआ था तब मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान में धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार किया था। जिन्ना की मृत्यु के चंद सालों में पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामी गणतंत्र घोषित कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान भी अधिक देर तक धर्मनिरपेक्ष नही रह सका। वह भी इस्लामी गणराज्य बन गया। जब देश की सरकारों का धर्म ही इस्लाम हो गया तो गैर मुसलमानों के साथ प्रताड़ना होना स्वाभाविक बात है। यद्यपि, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, ने विस्थापित हुए लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी और पाक प्रधान मंत्री लियाकत अली और भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मध्य 8 अप्रेल 1950 को एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे जिसमें 4 बिंदु है। विस्थापितों को संपति निपटारा के लिए आने जाने की अनुमति,अगवा की गई महिलाओं, उनकी संपत्तियों को वापस करना, जबरन धर्मांतरण को अमान्य, दोनों देशों में अल्पसंख्यक लोगों के लिए आयोगों का गठन। मुसलमानों का धर्म इस्लाम है अतः उनके साथ धार्मिक भेदभाव नही हो सकता। ऐसी स्थिति में उन लोगों को भारत की मान्यता देना क्या बुरी बात है, जिन्हें धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा हो। देश का विभाजन का आधार ही धार्मिक था। जो कि कुछ लोगों की महत्वाकांक्षा का प्रतिफल है।

इस मानवीय मुद्दे का फायदा उठाने के लिए कुछ संस्थाएं चुनी गई जहां वैचारिक वर्चस्व कट्टर विचारों के माननेवालों का है। जैसा कि लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में इसी सिलसिले में हुई हिंसा के पीछे पूर्व नामित सिमी और परवर्तित पी एफ आई, (जिसका उद्देश्य कट्टर इस्लामीकरण और गज़वा-ए-हिन्द है) का हाथ बताया गया, जिसकी जांच चल रही है। इसके अलावा वामपंथी विचारधारा के गढ़ माने जा रहे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय,, जाधवपुर विश्विद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि आदि। इनको उन्ही की जमात ने देशभर में सहायता की और मीडिया में इस विषय को जीवित बनाये रखा। ऐसे लोगों ने दिल्ली में कुछ स्थानों पैट नागरिक संशोधन कानून के खिलाफ एक महीने से विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया हुआ है। इस विरोध के पीछे देश के खिलाफ एजेंडा चलाने वाले लोग हैं। भारत धर्मनिरपेक्ष है से यह आशय नही निकालना चाहिए कि यहां धूर्त और मूर्ख लोग रहते हैं। यह बात भी समझनी चाहिए कि यहां लोग इस बात का भी ख्याल रखते हैं कि धार्मिक आड़ में क्या क्या खेल खेल जा रहे है। वामपंथी विचारधारा के जो लोग नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 पर बबंडर मचा रहे हैं उन्हें इन नारों के मतलब भी समझ मे आने चाहिए- तेरा मेरा रिश्ता क्या? ला इलाहलिल्लील्लाह। हिंदुत्व की कब्र खुदेगी …हमे चाहिए आज़ादी- हिंदुओं से आज़ादी.. मोदी से आज़ादी.. शाह से आज़ादी… इस विरोध प्रदर्शन को कॉंग्रेस पार्टी ताकत दे रही है। शाहीन बाग में आयोजित इस प्रकार के विरोध प्रदर्शन में कॉंग्रेस के बड़े बड़े नेता जाकर संबोधित कर रहे हैं। वक्ताओं में शशि थरूर और मणिशंकर अय्यर भी शामिल है। मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री के लिए कातिल भी इसी सभा मे कहा। बताया तो यह जा रहा है कि यह प्रदर्शन बिना नेतृत्व के चल रहा है लेकिन हकीकत भिन्न है। खबरें आ रही है कि वहां पर बैठनेवालों को 500-700 रुपये प्रतिव्यक्ति दिए जा रहे है। कॉंग्रेस के एक नेता ने स्वीकार किया कि वे प्रदर्शनकारियों के हितों के बारे में सोचते है। उनके इलाके में ये प्रदर्शन है।

हद तो ये है कि प्रदर्शन कारियों में बच्चों को भी शामिल किया गया है। इन्हें प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह विरोधी नारे रटाये गए हैं। ये बच्चे गली मोहल्ले में भी तेरा मेरा रिश्ता क्या….मुस्लिम एकता ज़िंदाबाद के नारे लगाते मिल जाते हैं। जिन बच्चों को नारा लगाने के लिए तैयार किया गया है, वे अबोध हैं। जिन लोगों ने उन्हें मोहरा बनाया है उनके सामने दिल्ली का चुनाव है। ये तो चुनाव जीत जाएंगे लेकिन जिन बच्चों को नारे सिखाये जा रहे हैं वे आने वाले समय मे दहशतगर्द ही बनेंगे। शाहीन बाग के इस धरना स्थल के मंच पर किसी अन्य पार्टी के वक्ता को बोलने नही दिया जाता। महिलाओं को भी भयंकर रूप से मोदी-शाह विरोधी बनाया गया है।

भारत आज़ाद देश है लेकिन भारत के अधिकतर लोग जाति, धर्म, सम्प्रदाय या वर्ण व्यवस्था में लिप्त होने के कारण नागरिकता की अवधारणा को अभी तक नही समझ पाए है। इन्हें अपने स्वार्थों की पूर्ति होना ही लोकतंत्र लगता है। जबकि नागरिक होने का अर्थ यह भी है कि हम राष्ट्र के हितों का ध्यान रखें। विरोध सरकार की जान विरोधी नीतियों का होना चाहिए न कि व्यक्तिगत। अनावश्यक रूप से एन आर सी के मामले को तूल दिया जा रहा है। कॉंग्रेस के कार्यकाल के ही ये मुद्दे हैं जिनका कॉंग्रेस विरोध कर रही है।कुछसमाज कंटक, धूर्त लोग अपने स्वार्थों के लिए देश मे अराजकता का माहौल बनाने में लगे है। उनके भावों को टी आर पी के लिए उपयोग कर रहा है बाज़ारवादी मीडिया। आखिर मीडिया का भी क्या जाता है अनाप सनाप बोलने और बुलाने का अधिकार संविधान ने दिया है। इन लोगों ने उस अनुच्छेद 19(1) को ही पढ़ा है उसके आगे की व्यस्थाएँ इनकी किताबों में फट चुकी हैं।

लोकतंत्र के नाम पर कुछ लोग जो विभ्रम पैदा कर रहे हैं यह देश के लिए घातक है। सरकार को काम करने दिया जाय । विभ्रम की स्थितियों को मिटाया जाना चाहिए। स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की है, अराजकता की नही। नागरिकता संशोधन अधिनियम उन लोगों की समझ मे आ जायेगा जो इसे कतई नही जानते। उनकी समझ मे नही आएगा जो न समझने का नाटक कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। जिसमे सर्वपंथ संभाव को अपना अभिन्न अंग बनाया हुआ है। इस संस्कृति में ईश्वर के नाम पर कोई झगड़ा नही। सभी को जीने का अधिकार है फिर अनावश्यक विवादों को जन्म क्यों दिया जा रहा है। यह विभ्रम पैदा करने का विचार बहुत घातक है।

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